दिलीप पाल
आमला- आमला ब्लाक में इस बार कक्षा 5वीं और 8वीं का परीक्षा परिणाम निराशाजनक रहा है। सबसे खराब परीक्षा परिणाम ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों का रहा। शासकीय माध्यमिक शाला डुडरिया में 23 बच्चों ने आठवी की परीक्षा दी थी। माध्यमिक शाला बिसखान में अध्ययनरत 28 बच्चे परीक्षा में शामिल हुए, लेकिन दोनों ही स्कूलों में कोई भी उत्तीर्ण नही हुआ है।
यही हाल माध्यमिक शाला गुबरैल, खिड़कीखुर्द का भी रहा, माध्यमिक शाला भयावाड़ी में 4 विद्यार्थी थे, जिसमें भी एक भी बच्चा परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाया। माध्यमिक शाला ठानी के 40 बच्चों में से 1 ही छात्र सफल रहा। खतेड़ा स्थित शासकीय स्कूल का भी यही हाल है, 17 में से 1 पास हुआ। माध्यमिक शाला हरदोली, परसोड़ी, सोमलापूर सहित दर्जनों स्कूलों का है। वहीं शहर क्षेत्र के स्कूल भी परीक्षा परिणाम में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाये। नगरपालिका परिषद द्वारा संचालित स्कूल में 11 विद्यार्थियों ने आठवी की परीक्षा दी थी, कोई भी उत्तीर्ण नही हुआ। सीएम राइज स्कूल में 36 में से सिर्फ 12 विद्यार्थी उत्तीर्ण रहे। शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भी 25 में से मात्र 2 विद्यार्थी ही सफल रहे। शासकीय माध्यमिक शाला खाण्डेपिपरिया में तो और भी बुरे हालात रहे। दर्ज संख्या 46 में से आधे विद्यार्थी याने 23 बच्चों ने तो परीक्षा ही नहीं दी। 23 विद्यार्थी परीक्षा देने आए जिसमें से सिर्फ 3 उत्तीर्ण हुए।

निजी स्कूल की अपेक्षा सरकारी स्कूलों के बच्चों को ज्यादा सुविधाएं-
यह सही है कि सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की अपेक्षा ज्यादा सुविधाएं बच्चों को मिल रही है। मध्यप्रदेश व केंद्र सरकार स्कूलों के बेहतर भविष्य को लेकर लगातार प्रयास कर रही है। बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित करने मध्याह्न भोजन वितरण, गणवेश वितरण, साइकिल वितरण, नि:शुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराने से लेकर विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्ति भी प्रदान की जा रही हैं। लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या नहीं बढ़ रही। सबसे बड़ा सवाल यही है कि उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जिनके पालक व अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी साक्षरता के आंकडों की बाजीगरी में ही खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन इन अधिकारियों को इस बात से कोई मलाल नहीं कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा का स्तर बद से बदतर होता जा रहा है।
करोड़ों खर्च, फिर भी नहीं सुधर रहा स्तर-
सरकार शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूलों और शिक्षा पर प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन सतत मॉनीटरिंग और बेहतर प्रबंधन के अभाव में सरकार की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। यही वजह है कि निजी विद्यालयों की ओर छात्र छात्राएं रुख कर रहे हैं, लेकिन यहां एक और प्रश्न खड़ा हो जाता है कि उन ग्रामीण क्षेत्र का क्या होगा, जहां पढऩे वाले तथा होनहार बच्चों के लिए निजी विद्यालय भी उपलब्ध नहीं है और उन गरीब परिवार के बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा जो केवल सरकारी शिक्षा पर ही निर्भर हैं। जल्द ही कोई प्रयास नहीं किए तो स्थिति और भी खराब हो सकती है।

शिक्षकों की उदासीनता का परिणाम-
सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की बढ़ती उदासीनता तथा अनुपस्थिति शिक्षा के गिरते स्तर को बढ़ावा दे रही हैं। अक्सर देखने में आता है कि कई सरकारी स्कूल समय पर नहीं खुलते या फिर खुलते भी है तो समय से पहले बंद हो जाते हैं। स्कूलों में शिक्षकों की संख्या शून्य के बराबर रहती है। इससे स्कूलों में बच्चे ही नहीं पहुंचते हैं। इन तमाम सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे कक्षा आठवीं तक पहुंचने के बाद भी विशुद्ध हिंदी तक पढ़ और लिख नहीं पाते। गणित और अंग्रेजी जैसे विषय में हालात और भी बदतर ही रहते है। नियमित कक्षा न लगने से बच्चे अपना समय बिता कर चले आते हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है और परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते।
इनका कहना है-
शिक्षा विभाग ने जो व्यवस्था की है उसके बाद भी यदि स्कूलों का परीक्षा परिणाम नही सुधरता है तो शिक्षकों की जिम्मेदारी तय की जाएगी और वरिष्ठ कार्यालय के निर्देशानुसार कार्यवाही भी की जाएगी।
मनीष धोटे, बी.आर.सी.सी. आमला।