जिला बनाओ संघर्ष समिति घर-घर पहुंचा रही हैं मुलताई बंद का संदेश;11 सितंबर को ऐतिहासिक बंद की तैयारी

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मुलताई- मुलताई को जिला बनाओ अभियान को सभी वर्ग सभी राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनो का सहयोग मिल रहा है जिससे जिला बनाओ संघर्ष समिति मे भारी उत्साह है किंतु 11 सितंबर को समिति द्वारा घोषित बंद को नगर के व्यापारियों का स्वेच्छा से कितना सहयोग मिल पाता है यह देखना आंदोलन के आगामी चरण के लिए  बहुत महत्वपूर्ण होगा । यही कारण है कि मुलतापी जिला बनाओ संघर्ष समिति के सदस्य 11 सितंबर को होने वाले मुलताई बंद का संदेश न सिर्फ व्यापारियों तक पहुंचा रहे हैं बल्कि नगर के आम नागरिको से भी बंद  की अपील कर रहे हैं।

बीती रात  जिला बनाओ संघर्ष समिति के लोकेश यादव, अजेंद्र रॉबिन परिहार, कृष्णा पवार, सलमान शाह , महावीर परिहार, अंकित पवार, शुभम पंडागरे, शहीद दर्जनों युवाओं ने अलग-अलग टीम बनाकर आधी रात तक संपूर्ण नगर में मुलताई बंद के पर्चे लगाए । अधिवक्ता लोकेश यादव एवं अजेंद्र परिहार ने बताया कि बैंड इस बार ऐतिहासिक बंद होगा क्योंकि हमने इसके लिए व्यापारियों से अलग-अलग संगठनों से भी चर्चा की है और हम जितने लोगों से मिले हैं इस बंद को लेकर हमसे ज्यादा उत्साह उन लोगों में दिखाई दिया इस बार मुलताई नगर का आम व्यक्ति इस मुहिम से जुड़कर मुलताई को जिला बनाने में शामिल है समिति के मंच पर भी दिखाई देता है और 11 तारीख को मुलताई बंद के दौरान भी दिखाई देगा।

मुलताई को जिला बनाओ अभियान इस बार है कुछ खास

मुलताई को जिला बनाने की मांग कोई नई मांग नहीं है बीते 25 वर्षों में अनेको बार इसको लेकर आंदोलन ।हुए ज्ञापन सोपे गए, मंत्री संतरियों से आवेदन निवेदन किया गया, बैठकों का दौर चला संस्थागत प्रस्ताव शासन को भेजे गए किंतु पिछले आंदोलन में आम व्यक्ति की सहभागिता कम ही दिखाई दी थी। किंतु इस बार आम आदमी में मुलताई को जिला बनाने का जो जस्बा  दिखाई देता हैं वह इससे पहले कभी नहीं देखा गया। पत्रकार कुलदीप पहाड़ इसका कारण बताते हैं कि इस बार क्षेत्र में जागृति इसलिए भी दिखाई देती है क्योंकि पांढुरना को जिला बनाए जाने के बाद क्षेत्रवासी अपने आप को ठगा महसूस कर रहे है क्योंकि पांडूरना जहां कभी जिला बनाने के लिए बड़ा आंदोलन नहीं हुआ, जहां कोई सत्ता से जुड़े बड़े नेता नहीं है जहां से भाजपा के सांसद विधायक नहीं चुने जाते, उसके बावजूद भी अगर पांढुरना जिला बन जाता है और वह भी मुलताई से पहले तो क्षेत्र वासीयो मे आक्रोश स्वाभाविक था जो आंदोलन के रूप में दिखाई दे रहा है।

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